तैयार हो गई गोरखालैंड की जमीन : क्षेत्री

KALIMPONG : गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के केंद्रीय प्रवक्ता और कालिम्पोंग के विधायक डॉ. हर्क बहादुर क्षेत्री ने कहा कि वार्ता काफी सफल रही। इसके दूरगामी परिणाम सामने आएंगे।
वह बुधवार को कोलकाता से वार्ता में भाग लेकर लौटने के बाद पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे। उन्होंने कहा कि दो महत्वपूर्ण समस्याओं का हल हो गया है। इसमें बागानों की तौजी और सीमांकन की समस्या लगभग हल हो गई। इसके अलावा वन विभाग के मामले के निबटारे के लिए शीघ्र ही केंद्र सरकार से वार्ता होगी। इसका फायदा मिलेगा। उन्होंने बताया कि वार्ता के दौरान अस्थायी कर्मचारियों के स्थायी करने पर बात की गई, लेकिन इस दौरान यह बात सामने आई कि सुप्रीम कोर्ट के नियम के मुताबिक सीधे स्थायी नहीं किया जा सकता है। ऐसे में तय हुआ कि जो लोग 10 वर्ष से कार्यरत हैं, वह सेमी और जो इससे ज्यादा हैं, उन्हें कमीशन के आधार दिए गए निर्देश के अनुसार 75 प्रतिशत दिया जाएगा। उन्होंने बताया कि आने वाले दिनों में लोगों को समृद्धि मिलेगी और कानूनी अधिकार मिलेंगे। इसके अलावा तौजी के लिए दो हफ्ते की समयसीमा निर्धारित की गई है। इसके लिए बनाई गई कमेटी में शामिल अधिकारी शीघ्र ही इस मसले का हल कर देंगे। इसके बाद चाय बागान का संपूर्ण प्रबंधन गोजमुमो के हाथ होगा और यहां कार्यरत श्रमिकों के जमीन की व्यवस्था, किराया आदि सभी का निर्धारण नई व्यवस्था के तहत किया जाएगा। सीमांकन के बाद जो भी गोजमुमो और पहाड़ के लोगों के पास आएगा, वह गोरखालैंड की ही तरह होगा। उन्होंने साफ किया कि अंतरिम सेटअप का अब कोई प्रश्न ही नहीं है और अब जो भी व्यवस्था होगी, वह नई व गोरखाओं के हित में होगी। एक तरह से ममता बनर्जी ने गोरखालैंड के पक्ष में एक नींव रख दी है और आने वाले समय में इसके सकारात्मक परिणाम सामने आएंगे।

समझौता समय की मांग : मचिंद्र सुब्बा

DARJEELING:  जनमुक्ति अस्थायी कर्मचारी संगठन के केंद्रीय अध्यक्ष मचिंद्र सुब्बा ने कहा कि गोजमुमो और प्रदेश सरकार के बीच हुआ समझौता समय की मांग है। पूर्व की सरकार हिल्स को लेकर गंभीर नहीं थी। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक झटके में ही हालात सुधारने के लिए कदम बढ़ा दिया है। यह पहाड़ के लोगों के लिए शुभ संकेत हैं।
बुधवार को ातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि परिषद में कार्यरत अस्थायी कर्मचारियों को स्थायी करने की दिशा में उठाया गया कदम काफी अच्छा है और इससे उन्हें राहत मिलेगी। दागोपाप के गठन के बाद उनके स्थायी करने की मांग पहले से ही हो रही है, लेकिन तत्कालीन सरकार ने इसे हमेशा अनसुना किया। बताने की जरूरत नहीं है कि इसके लिए कई आंदोलन हुए और कोई नतीजा नहीं निकला। इसके लिए गोजमुमो सुप्रीमो सहित सभी विधायक व नेता बधाई के पात्र हैं।

अब पहाड़ों में नई सियासत

SILIGURI: हिल्स में विधानसभा चुनाव प्रचार का समय था। गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के हजारों कार्यकर्ता और इसी बीच अचानक प्रत्याशी के आते ही जय गोरखालैंड की गूंज होने लगती। गजब का उत्साह और उल्लास। कुछ भी कर गुजरने को आमादा गोजमुमो कार्यकर्ताओं को देखकर लग रहा था कि यह चुनाव किसी के लिए महत्वपूर्ण हो चाहे नहीं, लेकिन गोरखालैंड प्रेमियों के लिए सबसे महत्वपूर्ण था। नारे गूंजते थे और पीले टीके लगाकर, ढोलक बजाती महिलाओं के नाचने-गाने का सिलसिला चलता रहा। यह उत्साह किसी और चीज के लिए नहीं बल्कि गोरखालैंड के लिए था। वर्षो पुराने सपने को लोग सच होते देख रहे थे। तय था कि हिल्स में गोजमुमो ही रहेगा और हुआ भी यही। भारी मतों या यह कहें कि जनता ने उम्मीदवारों को एकतरफा वोट दिया। लेकिन मंगलवार की वार्ता कई मसले पर अच्छी और कई पर अनिर्णायक रही। इस बाबत जब गोजमुमो महासचिव रोशन गिरि से पूछा गया तो वह चुप्पी साध गए। इधर, हिल्स में भी सरगर्मी शुरू हो गई और मोर्चा के नेताओं पर स्थानीय दलों के नेताओं ने कई गंभीर आरोप भी लगाए।
अलग राज्य गोरखालैंड के गठन के लिए मांग नई नहीं है। आजादी के पूर्व 1907 में हिल्स मं मैन एसोसिएशन ने इसकी मांग उठाई थी, लेकिन उस समय गोरखाओं की आबादी यहां हजारों में ही थी। इसके बाद फिर वर्ष 1980 में प्रांत परिषद का गठन हुआ और इस दल ने यहां आंदोलन किया, लेकिन इसे लोगों का समर्थन नहीं मिल पाया। इसी वर्ष गोरखा राष्ट्रीय मुक्ति मोर्चा के प्रमुख सुभाष घीसिंग ने अस्त्रधारी आंदोलन किया और इस दौरान वृहद आंदोलन हुआ। इससे लोगों के जुड़ने का सिलसिला चला और इसे भारी जनसमर्थन मिला। इस दौरान भारी हिंसा भी हुई थी और इसमें सैकड़ों जानें गई थी और करोड़ों की संपत्ति का नुकसान हुआ था। उस समय सुभाष घीसिंग को हिल्स टाईगर की संज्ञा दी गई थी। इसी बीच 23 अगस्त 1988 को गोरामुमो, राज्य सरकार और केंद्र सरकार के साथ त्रिपक्षीय वार्ता हुई। इस दौरान दार्जिलिंग गोरखा पार्वत्य परिषद का गठन हुआ। परिणाम हुआ कि गोरखालैंड के नाम पर आंदोलन कर रहे लोगों को निराशा हाथ लगी। लंबे समय तक हिल्स पर राज करने के बाद वर्ष 2005 में सरकार और गोरामुमो के बीच फिर वार्ता हुई। इस दौरान हिल्स में छठी अनुसूची लागू कराने को लेकर विधानसभा में प्रस्ताव पारित कराया गया, लेकिन संसद के दोनों सदन में यह प्रस्ताव पारित नहीं हो पाया। इसी दौरान जनता घीसिंग के खिलाफ खड़ी होने लगी और सात अक्टूबर 2007 को गोजमुमो का गठन हुआ। गोजमुमो सुप्रीमो विमल गुरुंग का दायरा बढ़ता गया और उनके बढ़ते जनाधार व अपने विपरीत माहौल देखकर घीसिंग को पहाड़ छोड़ना पड़ा। इसके बाद गोरखालैंड की बात ही होती रही। ऐसे में इस दल के उम्मीदवारों ने पूर्व में यह भी घोषणा की थी कि वह गोरखालैंड का मुद्दा विधानसभा में उठाएंगे। इस मसले पर कोई समझौता नहीं किया जाएगा और भी कई बातें कही गई थी। हालांकि अब भी गोजमुमो कह रहा है कि वह अपने मुद्दे पर कायम है।

 


 


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