KALIMPONG : भारतीय गोरखा परिसंघ की अध्यक्ष दिल कुमार भंडारी ने कहा कि गोरखालैंड को लेकर भ्रम पाल लिया गया है। भारत सरकार इस विषय को अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से जोड़कर देखता है, जबकि ऐसी बात नहीं है। गोरखालैंड बन गया तो इससे सीमा की सुरक्षा बढ़ जाएगी और यहां के लोग इसके प्रति कटिबद्ध रहेंगे। इस सीमा की रक्षा की जाती रहेगी और सरकार को किसी प्रकार संशय नहीं रखना चाहिए।
उन्होंने कहा कि गोरखा समुदाय को विकास के साथ कई मुद्दों पर ध्यान देने की आवश्यकता है। सिर्फ पहाड़ का विकास कर देने से ही गोरखा जाति को सम्मान नहीं मिल पाएगा। इसके लिए जरूरी है कि गोरखालैंड के लिए प्रयास किये जाएं। बीते दिनों गोरखाओं को अलग राज्य देने के लिए कई आंदोलन हुए और बात नजदीक आते ही पूरा प्रयास किया जाना चाहिए था, लेकिन मामला सिफर रहा। उन्होंने बताया कि गोरखा परिसंघ समुदाय के हितों की लड़ाई लड़ने के लिए कटिबद्ध है। इसके लिए दिल्ली में वरिष्ठ नेताओं को एकजुट करके गोरखाओं के पक्ष में माहौल बनाने के लिए प्रयास किया जा रहा है। सही मायने में यह संवैधानिक मांग है और इसके लिए गोरखाओं को एकजुट होकर लड़ाई लड़नी होगी। यह उनकी अस्मिता से जुड़ा मसला है और इस पर आंदोलन किया जाना जरूरी है। जो लोग कह रहे हैं कि इस समझौते से गोरखाओं का हित जुड़ा है और विकास होगा, वह गलत हैं। यह दल दूसरे दलों को नीचा दिखाने का कार्य कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि गोरखा समुदाय को विकास के साथ कई मुद्दों पर ध्यान देने की आवश्यकता है। सिर्फ पहाड़ का विकास कर देने से ही गोरखा जाति को सम्मान नहीं मिल पाएगा। इसके लिए जरूरी है कि गोरखालैंड के लिए प्रयास किये जाएं। बीते दिनों गोरखाओं को अलग राज्य देने के लिए कई आंदोलन हुए और बात नजदीक आते ही पूरा प्रयास किया जाना चाहिए था, लेकिन मामला सिफर रहा। उन्होंने बताया कि गोरखा परिसंघ समुदाय के हितों की लड़ाई लड़ने के लिए कटिबद्ध है। इसके लिए दिल्ली में वरिष्ठ नेताओं को एकजुट करके गोरखाओं के पक्ष में माहौल बनाने के लिए प्रयास किया जा रहा है। सही मायने में यह संवैधानिक मांग है और इसके लिए गोरखाओं को एकजुट होकर लड़ाई लड़नी होगी। यह उनकी अस्मिता से जुड़ा मसला है और इस पर आंदोलन किया जाना जरूरी है। जो लोग कह रहे हैं कि इस समझौते से गोरखाओं का हित जुड़ा है और विकास होगा, वह गलत हैं। यह दल दूसरे दलों को नीचा दिखाने का कार्य कर रहे हैं।
गोरखा की पहचान के लिए गोरखालैंड जरूरी
KALIMPONG : पिछले दिनों कोलकाता में गोरखा जनमुक्ति मोर्चा और पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बीच वार्ता हुई और समझौता हुआ। इस दौरान ममता बनर्जी ने कहा कि वार्ता के सार्थक परिणाम आएंगे और इससे विकास होगा। यह अच्छी बात है कि पहाड़ के विकास की बात की जा रही है, लेकिन अलग राज्य के प्रति भी सकारात्मक रुख दिखाया जाना चाहिए क्योंकि यह गोरखा समुदाय की पहचान से जुड़ा मसला है।
यह बातें रविवार को स्थानीय होटल में चल रहे भारतीय गोरखा परिसंघ के राष्ट्रीय कार्यकारी सभा में परिसंघ के कार्यकारी अध्यक्ष एनोश दास प्रधान ने कही। इस दौरान प्रधान ने कई प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित कराए। उन्होंने कहा कि इस सभा के दौरान कई छह महत्वपूर्ण प्रस्ताव पारित किये गए। इसमें पहला और मुख्य प्रस्ताव गोरखालैंड पारित किया गया। परिसंघ इसके लिए कटिबद्ध है और इसे हर हाल में पारित कराया जाएगा। दूसरा प्रस्ताव पश्चिम बंगाल सरकार को सिक्किम सरकार की भांति अलग राज्य का प्रस्ताव पारित कराना चाहिए। गोरखालैंड गोरखा जाति के पहचान के लिए अत्यंत आवश्यक और महत्वपूर्ण है। तीसरा प्रस्ताव जनता को भ्रष्टाचार के प्रति जागरूक रहने के लिए पारित कराया गया। चौथा प्रस्ताव तराई सहित अन्य क्षेत्रों में नेपाली भाषा के प्रयोग पर ध्यान दिलाने के पारित कराया गया। पांचवां प्रस्ताव भारत सरकार द्वारा जातीय जनगणना किये जाने के दौरान सभी गोरखा के नाम के आगे उसकी पहचान के लिए गोरखा का जिक्र किये जाने को लेकर पारित किया गया। छठा प्रस्ताव गोरखाओं को शिक्षा दिलाने के लिए कार्य करने को लेकर पारित कराया गया। सम्मेलन के दौरान देश के विभिन्न स्थानों से आए कार्यकर्ता और नेता मौजूद रहे।
यह बातें रविवार को स्थानीय होटल में चल रहे भारतीय गोरखा परिसंघ के राष्ट्रीय कार्यकारी सभा में परिसंघ के कार्यकारी अध्यक्ष एनोश दास प्रधान ने कही। इस दौरान प्रधान ने कई प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित कराए। उन्होंने कहा कि इस सभा के दौरान कई छह महत्वपूर्ण प्रस्ताव पारित किये गए। इसमें पहला और मुख्य प्रस्ताव गोरखालैंड पारित किया गया। परिसंघ इसके लिए कटिबद्ध है और इसे हर हाल में पारित कराया जाएगा। दूसरा प्रस्ताव पश्चिम बंगाल सरकार को सिक्किम सरकार की भांति अलग राज्य का प्रस्ताव पारित कराना चाहिए। गोरखालैंड गोरखा जाति के पहचान के लिए अत्यंत आवश्यक और महत्वपूर्ण है। तीसरा प्रस्ताव जनता को भ्रष्टाचार के प्रति जागरूक रहने के लिए पारित कराया गया। चौथा प्रस्ताव तराई सहित अन्य क्षेत्रों में नेपाली भाषा के प्रयोग पर ध्यान दिलाने के पारित कराया गया। पांचवां प्रस्ताव भारत सरकार द्वारा जातीय जनगणना किये जाने के दौरान सभी गोरखा के नाम के आगे उसकी पहचान के लिए गोरखा का जिक्र किये जाने को लेकर पारित किया गया। छठा प्रस्ताव गोरखाओं को शिक्षा दिलाने के लिए कार्य करने को लेकर पारित कराया गया। सम्मेलन के दौरान देश के विभिन्न स्थानों से आए कार्यकर्ता और नेता मौजूद रहे।
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