DARJEELING: जो लोग यह सोचते हैं कि गोरखा राष्ट्रीय मुक्ति मोर्चा प्रमुख सुभाष घीसिंग पहाड़ डर से छोड़ गए हैं, वह गलत हैं। उन्होंने शांति व्यवस्था बनाने के लिए हिल्स छोड़ा है और इसको लेकर भ्रम नहीं पाला जाना चाहिए। वह पहले ही अपनी ताकत दिखा चुके हैं। आने वाले दिनों में वह फिर लौट आएंगे और अपनी ताकत से विपक्षियों का मुंह बंद कर देंगे।
यह बातें रविवार को गोरामुमो के समर्थक बीबी राई ने कही। उन्होंने कहा कि गोरामुमो ने हिल्स के लिए कई विकास के कार्य किये और इसका परिणाम रहा कि यहां के लोगों को पहचान मिली। यही वजह थी कि कई स्वयंसेवी संस्थाओं ने उन्हें सम्मानित किया। इन बातों को ध्यान रखते हुए सुभाष घीसिंग ने पहाड़ छोड़ दिया। हालांकि एक बात यह भी तय है कि गोरामुमो प्रमुख इस समय हिल्स के लोगों के लिए चिंतित हैं और इसके लिए वह प्रयासरत भी हैं। वह सरकार से इस बाबत बात कर रहे हैं। वह छठी अनुसूची को लेकर जागरूक हैं और आने वाले दिनों छठी अनुसूची की मांग तेज होगी। उनका प्रयास सार्थक होगा और इससे पहाड़ के लोग लाभान्वित होंगे। जिस दिन वह पहाड़ लौट कर आएंगे, उसी दिन से संगठन के निष्क्रिय कार्यकर्ता भी सक्रिय हो जाएंगे। वह गोरखा समुदाय के हितों के लिए हमेशा जागरूक रहे और यही कारण था कि उन्होंने अस्त्रधारी आंदोलन किया। इसके बाद दार्जिलिंग गोरखा पार्वत्य परिषद (दागोपाप) का गठन हुआ। इसके बाद उन्होंने गोरखाओं के लिए छठी अनुसूची को लागू कराने के लिए प्रयास किया और प्रदेश सरकार ने इस पर अपनी सहमति भी दे दी थी, लेकिन कुछ कारण से इसमें देरी हो गई और मामला अटक गया। इसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और गोरखा समुदाय के हितों के लिए लड़ाई लड़ते रहे। आने वाले दिनों में गोरामुमो प्रमुख फिर लौट कर आएंगे और यहां के लोगों के विकास के प्रति कार्य करेंगे।
यह बातें रविवार को गोरामुमो के समर्थक बीबी राई ने कही। उन्होंने कहा कि गोरामुमो ने हिल्स के लिए कई विकास के कार्य किये और इसका परिणाम रहा कि यहां के लोगों को पहचान मिली। यही वजह थी कि कई स्वयंसेवी संस्थाओं ने उन्हें सम्मानित किया। इन बातों को ध्यान रखते हुए सुभाष घीसिंग ने पहाड़ छोड़ दिया। हालांकि एक बात यह भी तय है कि गोरामुमो प्रमुख इस समय हिल्स के लोगों के लिए चिंतित हैं और इसके लिए वह प्रयासरत भी हैं। वह सरकार से इस बाबत बात कर रहे हैं। वह छठी अनुसूची को लेकर जागरूक हैं और आने वाले दिनों छठी अनुसूची की मांग तेज होगी। उनका प्रयास सार्थक होगा और इससे पहाड़ के लोग लाभान्वित होंगे। जिस दिन वह पहाड़ लौट कर आएंगे, उसी दिन से संगठन के निष्क्रिय कार्यकर्ता भी सक्रिय हो जाएंगे। वह गोरखा समुदाय के हितों के लिए हमेशा जागरूक रहे और यही कारण था कि उन्होंने अस्त्रधारी आंदोलन किया। इसके बाद दार्जिलिंग गोरखा पार्वत्य परिषद (दागोपाप) का गठन हुआ। इसके बाद उन्होंने गोरखाओं के लिए छठी अनुसूची को लागू कराने के लिए प्रयास किया और प्रदेश सरकार ने इस पर अपनी सहमति भी दे दी थी, लेकिन कुछ कारण से इसमें देरी हो गई और मामला अटक गया। इसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और गोरखा समुदाय के हितों के लिए लड़ाई लड़ते रहे। आने वाले दिनों में गोरामुमो प्रमुख फिर लौट कर आएंगे और यहां के लोगों के विकास के प्रति कार्य करेंगे।
UFFF STILL STUCK WITH CHHAKKA SCHEDULE....PLEASE GHISHING AT LEAST DEMAND UT...EVERYBODY WILL SUPPORT YOU AND I WILL WORSHIP YOU LIKE GOD REST OF MY LIFE.
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