DARJEELING : क्रांतिकारी मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के केंद्रीय महासचिव गोविंद क्षेत्री ने कहा कि गोरखा राष्ट्रीय मुक्ति मोर्चा के प्रमुख सुभाष घीसिंग ने अलग राज्य के नाम पर वर्ष 1986 में आंदोलन किया था। इस दौरान कई लोगों की जानें गई थी। इसके बाद हालात बिगड़ गए थे और इस हिंसा में जानमाल का काफी नुकसान हुआ था। अब इसी रास्ते पर गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के सुप्रीमो विमल गुरुंग भी चल पड़े हैं। अलग राज्य का वादा करके लोगों को सीमांकन दिलाकर और उसे गोरखालैंड का नाम देना गलत है।
उन्होंने बातचीत के दौरान कहा कि घीसिंग की कार्यशैली के कारण आज भी हिल्स की जनता उनसे घृणा करती है और गोजमुमो नेताओं ने अपनी कार्यशैली नहीं बदली तो उनका भी यही हश्र होगा। मोर्चा के नेताओं के सामने ऐसी कौन सी बाध्यता आ गई कि उन्हें यह समझौता करना पड़ा। उन्हें पहाड़ के जनमानस की भावनाओं का ख्याल रखना चाहिए। इसका खुलासा किया जाना चाहिए। विमल गुरुंग के इस कदम से जाहिर होता है कि वह अलग राज्य गोरखालैंड के आंदोलन से थक गए हैं। ऐसी परिस्थिति आने के बाद गोजमुमो नेताओं को साफ कर देना चाहिए कि वह आंदोलन नहीं कर सकते हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि जनता के सामने गोरखा जनमुक्ति मोर्चा जनता के सामने सफेद झूठ बोल रही है और नई व्यवस्था के नाम पर लोगों को बरगला रही है। यह व्यवस्था कुछ नहीं बल्कि दार्जिलिंग गोरखा पार्वत्य परिषद है। इसी पर घीसिंग ने समझौता किया है और यही कार्य मोर्चा ने भी कर दिया। सीमांकन के सवाल पर उन्होंने कहा कि तराई-डुवार्स के भू-भागों को पहले ही अलग या मिलाया गया होता तो दूसरी बात होती, लेकिन इस समय स्थिति बदल गई है। इस समय हंगामा होने का सबसे बड़ा संकट है। उन्होंने कहा कि अभी भी बात बिगड़ी नहीं है। गोजमुमो के साथ अभी भी जनता है और इसे समझते हुए इस दल के नेताओं को जनता की भावना का ख्याल रखते हुए अपने अलग राज्य के मुद्दे पर अडिग रहना चाहिए ताकि उसकी साख बनी रहे। समय रहते नेता समझ गए तो आने वाले दिनों अलग राज्य के गठन का श्रेय इस दल को मिल सकता है।
Courtesy: jagran
उन्होंने बातचीत के दौरान कहा कि घीसिंग की कार्यशैली के कारण आज भी हिल्स की जनता उनसे घृणा करती है और गोजमुमो नेताओं ने अपनी कार्यशैली नहीं बदली तो उनका भी यही हश्र होगा। मोर्चा के नेताओं के सामने ऐसी कौन सी बाध्यता आ गई कि उन्हें यह समझौता करना पड़ा। उन्हें पहाड़ के जनमानस की भावनाओं का ख्याल रखना चाहिए। इसका खुलासा किया जाना चाहिए। विमल गुरुंग के इस कदम से जाहिर होता है कि वह अलग राज्य गोरखालैंड के आंदोलन से थक गए हैं। ऐसी परिस्थिति आने के बाद गोजमुमो नेताओं को साफ कर देना चाहिए कि वह आंदोलन नहीं कर सकते हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि जनता के सामने गोरखा जनमुक्ति मोर्चा जनता के सामने सफेद झूठ बोल रही है और नई व्यवस्था के नाम पर लोगों को बरगला रही है। यह व्यवस्था कुछ नहीं बल्कि दार्जिलिंग गोरखा पार्वत्य परिषद है। इसी पर घीसिंग ने समझौता किया है और यही कार्य मोर्चा ने भी कर दिया। सीमांकन के सवाल पर उन्होंने कहा कि तराई-डुवार्स के भू-भागों को पहले ही अलग या मिलाया गया होता तो दूसरी बात होती, लेकिन इस समय स्थिति बदल गई है। इस समय हंगामा होने का सबसे बड़ा संकट है। उन्होंने कहा कि अभी भी बात बिगड़ी नहीं है। गोजमुमो के साथ अभी भी जनता है और इसे समझते हुए इस दल के नेताओं को जनता की भावना का ख्याल रखते हुए अपने अलग राज्य के मुद्दे पर अडिग रहना चाहिए ताकि उसकी साख बनी रहे। समय रहते नेता समझ गए तो आने वाले दिनों अलग राज्य के गठन का श्रेय इस दल को मिल सकता है।
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