वामो के ड्राफ्ट पर ही ममता ने किया हस्ताक्षर: अशोक
SILIGURI : राज्य की तृणमूल-कांग्रेस गठबंधन की सरकार पहाड़ समस्या के प्रति सजग नहीं है। सात जून को द्विपक्षीय वार्ता के बाद जो भी हस्ताक्षर किया गया वह पहले ही वामो का तैयार किया हुआ था। तृणमूल और कांग्रेस ने खत्म हो चुके सीमांकन के मुद्दे पर कमेटी बनाकर समतल क्षेत्र में अशांति की आहट पैदा कर दी है। इसे गृहमंत्री ने कैसे स्वीकार कर लिया यह समझ के परे है। यह कहना है कि दार्जिलिंग वामो के चेयरमैन अशोक नारायण भट्टाचार्य का। वह बुधवार को सांसद समन पाठक और राज्य कमेटी सदस्य जीवेश सरकार के साथ हुई माकपा की बैठक के बाद पत्रकारों से बात कर रहे थे। भट्टाचार्य ने कहा कि राज्य सरकार की पहल पर त्रिपक्षीय वार्ता प्रारंभ हुई। रोशन गिरि के चार सितम्बर 2010 व 17 अगस्त 2010 के पत्र में स्पष्ट है कि अंतरिम सेटअप के लिए वह राजी है। मई 2011 तक के लिए वह सीमांकन के मुद्दे को छोड़ने को तैयार है। उसके बाद राजनीति स्तर पर बातचीत होगी। इतना ही नहीं 19 जनवरी 2011 को गृहमंत्री ने गृहसचिव स्तरीय बातचीत की थी। उसमें उन्होंने स्पष्ट कहा था कि दोगोपाप के क्षेत्र को छोड़ अन्य कोई क्षेत्र नहीं मिलने वाला। इसके आधार अंतरिम प्राधिकरण को लेकर ड्राफ्ट तैयार करने को कहा गया था। 25 जनवरी को इस पर सहमती बनी। 28 जनवरी को राज्य गृह सचिव जीडी गौतम ने नौ सूत्रीय ड्राफ्ट तैयार कर गृह मंत्रालय को राज्य सरकार के माध्यम से भेजा। इसमें पहली बात थी कि गणतांत्रिक तरीके से प्राधिकरण का गठन होगा। यह दागोपाप के तहत ही रहेगा। इसे विधानसभा चुनाव के परिणाम के एक माह के अंदर प्रारंभ करना होगा। साथ ही इसके लिए एक प्रशासनिक बोर्ड बनाना होगा। 31 जनवरी 11 को केंद्र सरकार की तरफ से इस पर मोहर लगा दी गई। केंद्र ने फैक्स कर मुख्य सचिव समर घोष को बताया कि 10 सूत्रीय मांग पर हस्ताक्षर होगा। गोजमुमो को अपना आंदोलन वापस लेना होगा। शांति का वादा करना होगा। प्राधिकरण दागोपाप के तहत ही रहेगा। इसके बाद ही सात दिनों के बाद विमल गुरुंग दिल्ली नहीं जाकर कुमाऊं में अपना आंदोलन प्रारंभ किया। इन सात दिनों में क्या हुआ यह आज भी रहस्य है। एक प्रश्न के जवाब में भट्टाचार्य ने कहा कि जिस प्रकार सिर्फ गोजमुमो के प्रतिनिधियों को लेकर सीमांकन कमेटी बनी वह विवाद का कारण बन सकता है। जहां तक अस्थाई कर्मचारियों को स्थाई करने की बात है वह वामो का पहले का ही फैसला है। हम चाहते थे कि गोरखाओं को छठी अनुसूची के तहत ताकत मिले। यह एक ऐसी ताकत है जो स्वयं कानून बना सकती है। वामो पूरे मामले को देख रही है समय आने पर इसका विरोध किया जाएगा।
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