DARJEELING : क्रांतिकारी मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के केंद्रीय प्रवक्ता गोविंद क्षेत्री ने कहा कि गोरखालैंड के नाम पर चुनाव जीत कर सत्ता के सुख में लीन गोजमुमो नेताओं को तेलंगाना के नेताओं से सीख लेने की आवश्यकता है। तेलंगाना के नेताओं ने अलग राज्य के प्रति समर्पण दिखाकर अपने आंदोलन के ईमानदारी को साबित कर दिया है।
मंगलवार को बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि अलग राज्य के नाम पर ही हिल्स की जनता ने गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के उम्मीदवारों को चुनाव में जीत दिलाई। तेलंगाना के सांसद, विधायक ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और अपनी मांग पर अड़े रहे। ऐसे में गोजमुमो का फर्ज था कि उन्हें अलग राज्य के लिए आंदोलन करना चाहिए था, लेकिन इस दल ने जनता की भावना के साथ खिलवाड़ किया। गोजमुमो चुनाव जीत के बाद आराम की मुद्रा में आ गया है और उसे गोरखाओं के हित से कोई लेना-देना नहीं रह गया है। यही हाल गोरखा राष्ट्रीय मुक्ति मोर्चा प्रमुख सुभाष घीसिंग के शासन में हुआ था और इसका परिणाम रहा कि धीरे-धीरे विरोध बढ़ने के कारण उन्हें पहाड़ छोड़ना पड़ा। इस दल को गोरखालैंड के गठन का अवसर मिला था, लेकिन इसे गंवा दिया गया। यही हाल आने वाले दिनों में भी होगा। अलग राज्य गोरखालैंड के आंदोलन को टालने की बात विमल गुरुंग कर रहे हैं, लेकिन इसका परिणाम स्पष्ट हो गया है। गोरखा जनमुक्ति मोर्चा अलग राज्य के नाम पर अब कोई आंदोलन करने वाला नहीं है। इस दल के नेता नई व्यवस्था के कसीदे पढ़ रहे हैं और इसी से आने वाले दिनों में आंदोलन के होने वाले हश्र को समझा जा सकता है। मोर्चा नेता पूर्व में हुए आंदोलनों के दौरान शहीदों की शहादत को भूल गए और कई घायलों के प्रयासों को ताक पर रख दिया। गोविंद क्षेत्री ने कहा कि अभी भी समय है और गोजमुमो को तेलंगाना से प्रेरणा लेकर अलग राज्य के लिए आंदोलन करना चाहिए। इसमें उनके साथ हिल्स की संपूर्ण जनता साथ रहेगी। नई व्यवस्था से इस दल के नेताओं को दूर रहना चाहिए।
-जागरण
मंगलवार को बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि अलग राज्य के नाम पर ही हिल्स की जनता ने गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के उम्मीदवारों को चुनाव में जीत दिलाई। तेलंगाना के सांसद, विधायक ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और अपनी मांग पर अड़े रहे। ऐसे में गोजमुमो का फर्ज था कि उन्हें अलग राज्य के लिए आंदोलन करना चाहिए था, लेकिन इस दल ने जनता की भावना के साथ खिलवाड़ किया। गोजमुमो चुनाव जीत के बाद आराम की मुद्रा में आ गया है और उसे गोरखाओं के हित से कोई लेना-देना नहीं रह गया है। यही हाल गोरखा राष्ट्रीय मुक्ति मोर्चा प्रमुख सुभाष घीसिंग के शासन में हुआ था और इसका परिणाम रहा कि धीरे-धीरे विरोध बढ़ने के कारण उन्हें पहाड़ छोड़ना पड़ा। इस दल को गोरखालैंड के गठन का अवसर मिला था, लेकिन इसे गंवा दिया गया। यही हाल आने वाले दिनों में भी होगा। अलग राज्य गोरखालैंड के आंदोलन को टालने की बात विमल गुरुंग कर रहे हैं, लेकिन इसका परिणाम स्पष्ट हो गया है। गोरखा जनमुक्ति मोर्चा अलग राज्य के नाम पर अब कोई आंदोलन करने वाला नहीं है। इस दल के नेता नई व्यवस्था के कसीदे पढ़ रहे हैं और इसी से आने वाले दिनों में आंदोलन के होने वाले हश्र को समझा जा सकता है। मोर्चा नेता पूर्व में हुए आंदोलनों के दौरान शहीदों की शहादत को भूल गए और कई घायलों के प्रयासों को ताक पर रख दिया। गोविंद क्षेत्री ने कहा कि अभी भी समय है और गोजमुमो को तेलंगाना से प्रेरणा लेकर अलग राज्य के लिए आंदोलन करना चाहिए। इसमें उनके साथ हिल्स की संपूर्ण जनता साथ रहेगी। नई व्यवस्था से इस दल के नेताओं को दूर रहना चाहिए।
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