Darjeeling,May 9: क्रांतिकारी मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी ने विधानसभा चुनाव में माकपा के बहकावे में आकर भाग नहीं लिया। इस दल का नेतृत्व करने वाले केंद्रीय अध्यक्ष आरवी राई कुशल नेता हैं, लेकिन उनका लोभी चरित्र इस चुनाव में सामने आया और यह उनके भविष्य की राजनीति को काफी प्रभावित करेगा। अलग राज्य गोरखालैंड के गठन की मांग करने वाले इस दल ने इस चुनाव में अपनी हार और माकपा के जीत के लिए चुनाव से बहिष्कार किया था।
यह आरोप मंगलवार को गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के केंद्रीय प्रवक्ता डॉ. हर्क बहादुर क्षेत्री ने लगाए। बातचीत के दौरान उन्होंने आरवी राई पर कई आरोप लगाए और कहा कि हालिया दिनों में क्रामाकपा प्रमुख ने जिस तरह की बयानबाजी की है, उससे स्पष्ट हो गया है कि वह विपक्षियों के साथ आ गए हैं। उन्होंने स्वीकार किया कि चुनाव के पूर्व तय किया गया था कि गोजमुमो के साथ मिलकर क्रामाकपा चुनाव लड़ेगी। इस दौरान इस दल ने जिस प्रकार रणनीति अपने प्रत्याशियों के लिए बनाई थी, उससे स्पष्ट हो गया कि इस दल में लोभ बहुत हो गया है और इसके लिए वह किसी भी हद तक गिर सकता है। पहले इसने सर्वदलीय प्रत्याशी की बात की और इसके बाद क्रामाकपा ने सोची-समझी राजनीति के तहत अखिल भारतीय गोरखालीग के साथ साझा प्रत्याशी उतारने की बात की। इस पर गोजमुमो राजी नहीं हुआ और बात बनते नहीं देख क्रामाकपा ने चुनाव से दूर रहने की ठान ली। दरअसल इस दल के प्रत्याशी मैदान में उतरते तो उन्हें हार का स्वाद चखना पड़ता, लेकिन मौके की नजाकत को भांपकर इस दल ने माकपा को जीत दिलाने और अपने प्रत्याशी को हार से बचाने के लिए चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा कर डाली। उन्होंने कहा कि इस चुनाव में गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के प्रत्याशियों की जीत पक्की है, हालांकि इसके बाद विजयी प्रत्याशी जीत का जश्न नहीं मनाएंगे क्योंकि असली जीत तभी होगी जब गोरखालैंड का गठन हो जाएगा।
यह आरोप मंगलवार को गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के केंद्रीय प्रवक्ता डॉ. हर्क बहादुर क्षेत्री ने लगाए। बातचीत के दौरान उन्होंने आरवी राई पर कई आरोप लगाए और कहा कि हालिया दिनों में क्रामाकपा प्रमुख ने जिस तरह की बयानबाजी की है, उससे स्पष्ट हो गया है कि वह विपक्षियों के साथ आ गए हैं। उन्होंने स्वीकार किया कि चुनाव के पूर्व तय किया गया था कि गोजमुमो के साथ मिलकर क्रामाकपा चुनाव लड़ेगी। इस दौरान इस दल ने जिस प्रकार रणनीति अपने प्रत्याशियों के लिए बनाई थी, उससे स्पष्ट हो गया कि इस दल में लोभ बहुत हो गया है और इसके लिए वह किसी भी हद तक गिर सकता है। पहले इसने सर्वदलीय प्रत्याशी की बात की और इसके बाद क्रामाकपा ने सोची-समझी राजनीति के तहत अखिल भारतीय गोरखालीग के साथ साझा प्रत्याशी उतारने की बात की। इस पर गोजमुमो राजी नहीं हुआ और बात बनते नहीं देख क्रामाकपा ने चुनाव से दूर रहने की ठान ली। दरअसल इस दल के प्रत्याशी मैदान में उतरते तो उन्हें हार का स्वाद चखना पड़ता, लेकिन मौके की नजाकत को भांपकर इस दल ने माकपा को जीत दिलाने और अपने प्रत्याशी को हार से बचाने के लिए चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा कर डाली। उन्होंने कहा कि इस चुनाव में गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के प्रत्याशियों की जीत पक्की है, हालांकि इसके बाद विजयी प्रत्याशी जीत का जश्न नहीं मनाएंगे क्योंकि असली जीत तभी होगी जब गोरखालैंड का गठन हो जाएगा।
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