डुवार्स-तराई आदिवासी विकास परिषद ने की पांचवीं अनुसूची की मांग

(जागरण)मालबाजार, संवादसूत्र : अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद से टूट कर अलग हुए डुवार्स-तराई आदिवासी विकास परिषद के सचिव राजेश लाकड़ा ने डुवार्स क्षेत्र की छह विधान सभा की आरक्षित सीटों पर निर्दलीय प्रत्याशी खड़ा करने का ऐलान किया है। 18 मार्च को इन प्रत्याशियों के नाम की घोषणा कर दी जाएगी। साथ ही उन्होंने राजनैतिक दलों से इन प्रत्याशियों को बिना श‌र्त्त समर्थन देने का आह्वान भी किया है। मंगलवार को जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार राजेश लाकड़ा ने आविप के राज्य नेतृत्व पर व्यक्तिगत स्वार्थ से प्रेरित होकर एक खास राजनैतिक दल का समर्थन करने का आरोप लगाया है। उन्होंने डुवार्स व तराई क्षेत्र के आदिवासियों के लिए छठी अनुसूची को अनुपयुक्त बताते हुए पांचवीं अनुसूची को आदिवासियों के हित में बताया है। श्री लाकड़ा ने कहा है कि उनका संगठन निर्दलीय के बतौर चुनाव लड़ेगा। वह किसी भी राजनैतिक दल का समर्थन नहीं करेगा। न ही संगठन किसी राजनैतिक दल के साथ गठजोड़ करेगा। लेकिन यदि कोई राजनैतिक दल वास्तव में आदिवासी समुदाय का हित चाहता है तो उसे हमारे निर्दलीय प्रत्याशी को समर्थन देना चाहिए। श्री लाकड़ा ने आरोप लगाया कि आजादी के 64 वर्ष में भी कांग्रेस या माकपा के शासनकाल में आदिवासी समुदाय का विकास नहीं हुआ। इस समुदाय का राजनैतिक दलों ने केवल वोट बैंक के बतौर इस्तेमाल किया है। उन्होंने कहा कि संगठन छह आरक्षित सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारेगा। इसके लिए संबंधित चुनाव क्षेत्रों से तीन तीन नाम आमंत्रित किए गए हैं। श्री लाकड़ा ने कहा कि आविप के राज्य नेता अपने व्यक्तिगत हित में एक विशेष राजनैतिक दल के पक्ष में पैरवी कर रहे हैं। ये वही नेता हैं जिन्होंने कहा था कि उनका सभी राजनैतिक दलों पर से विश्वास उठा गया है। इसलिए आदिवासी समाज को यह विचार करना होगा कि उनका वास्तविक हितैषी कौन है। श्री लाकड़ा ने कहा कि छठी अनुसूची से आदिवासियों का भला नहीं होगा। चूंकि इस समुदाय के अंदर अभी भी बहुत से लोग एससी, ओबीसी एवं जनरल कास्ट के हैं। हालांकि इन सभी की भाषा व संस्कृति एक है। अभी भी आदिवासियों को जंगल, जल जमीन का संवैधानिक अधिकार नहीं मिला है। इसलिए जमीन का अधिकार दिलाने के लिए हमें पांचवीं अनुसूची को लागू किया जाना चाहिए। छठी अनुसूची में मान्यता प्राप्त जनजाति समुदायों को ही सुविधा प्राप्त होंगी। साथ ही उसके उपर राज्य सरकार का नियंत्रण होगा। हमें छठी अनुसूची और पांचवीं अनुसूची के फर्क को समझना होगा। मुट्ठी भर आविप के नेताओं के कहने पर क्या हमें छठी अनुसूची को मान लेना चाहिए। आदिवासी समुदाय अपनी सामुदायिक एकता को बनाए रखकर राजनैतिक दलों के प्रलोभन में नहीं आए।
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